5.7 Premchand’s letter 2
नवल
किशोर प्रेस,
प्रकाशन
विभाग,
लखनऊ
17 दिसम्बर
1930
प्रिय जैनेंद्र जी,
बंदे ! पत्र मिला | वाह ! आपने कहानी लिख दी होती तो क्या पूछना | मैंने तो इस वजह से नहीं कहा था कि आपको कष्ट क्यों दूँ | अभी तक समय है, हालाँकि छपाई शुरू हो गई है | पर आपकी कहानी मिल जाती तो आख़िर वक़्त भी दे देता | क्या अब भी मुश्किल है ?
‘ परख ‘ की आलोचना मैं ‘ माधुरी ‘ या ‘हंस’ में करूँगा | मेरे पास दो प्रतियों में से एक भी नहीं बची | एक तो जेल भेज दी थी, दूसरी एक महिला ले गईं और अभी तक लौटा रही हैं | इसलिए उसका असर जो दिल पर पड़ा था वही लिखूँगा | ‘ गढ़ कुंडार ‘ तो नई चीज़ है, मगर मेरा मन उसके पढ़ने में न लगा | दो-एक चरित्रों का चित्रण उसमें अच्छा हुआ है | उनकी आलोचना भी करूँगा |
‘ ग़बन ‘ अभी तैयार नहीं हुआ | तीन सौ पृष्ठ छप चुके हैं | अभी एक सौ पृष्ठ और और होंगे | यह एक सामाजिक घटना है | मैं पुराना हो गया हूँ और पुरानी शैली निभाए जाता हूँ | कथा को बीच में शुरू करना या इस तरह शुरू करना कि उसमें ड्रामा का चमत्कार पैदा हो जाए मेरे लिए मुश्किल है | पुरस्कारों का विचार करना मैंने छोड़ दिया | अगर मिल जाए तो ले लूँगा, पर इस तरह जिस तरह पड़ा हुआ धन मिल जाए | आप या प्रसाद जी पा जाएँ तो मुझे समान हर्ष होगा | आपको ज़्यादा ज़रूरत है इसलिए ज़्यादा खुश हूँगा |
पुत्र मुबारक | ईश्वर चिरायु करे | या यों कहूँ, चिरायु हो | मैं तो पुराने ख़याल का आदमी हूँ | दो पुत्रों तक तो बधाई दूँगा, इसके बाद ज़रा सोचूँगा |
‘ हंस ‘ और ‘ माधुरी ‘ दोनों ही यथास्थान भेज दी जाएँगी | ‘ शराबी ‘ और ‘ गढ़ कुंडार ‘ दोनों ही की एक-एक प्रति मिली थी | वे दोनों भी मैंने पढ़कर जेल भेज दीं | अब तो उनके आने पर किताबें वापस होंगी | आखिर आप कब तक आएँगे | ‘ माधुरी ‘ में दो में से एक भी आलोचना के लिए नहीं आईं |
अब आपके उस प्रश्न का जवाब कि ‘ परख ‘ को मैं प्रसाद स्कूल के निकट क्यों समझता हूँ | मैं तो कोई स्कूल नहीं मानता, आपने ही एक बार ‘ प्रसाद स्कूल ‘, ‘प्रेमचंद स्कूल ‘ की चर्चा की थी | शैली में ज़रूर कुछ अंतर है, मगर वह अंतर कहाँ है यह मेरी समझ में खुद नहीं आता | आपकी शैली में स्फूर्ति-सजीवता कहीं अधिक है | चुटकियाँ, चुलबुलापन कहीं अधिक है | प्रसाद जी के यहाँ गंभीरता और कवित्व अधिक है | Idealist हममें से कोई भी नहीं है | हममें से कोई भी जीवन को उसके यथार्थ रूप में नहीं दिखाता, बल्कि उसके वांछित रूप में ही दिखाता है | मैं नग्न यथार्थ का प्रेमी भी नहीं हूँ | आपसे मिलने पर ‘ परख ‘ के विषय में बातें होंगी- तब तक ग़बन भी तैयार हो जाए |
आशा है आप प्रसन्न होंगे |
भवदीय
धनपत राय
पी.एस : अगर हो सका तो मैं ‘ शराबी ‘, ‘ गढ़ कुंडार ‘ और ‘ कंकाल ‘ तीनों ही किसी तरह मँगवाकर भेजूँगा | समालोचना अवश्य कीजिएगा, ‘ हंस ‘ के लिए |
Glossary
| कष्ट | n.m. | trouble, pain |
| क्यों दूँ | why should I give | |
| हालाँकि | conj. | although |
| छपाई | n.f. | publication |
| माधुरी | n.f. | Madhuri (name of a Hindi magazine) |
| हंस | n.m. | Hans (name of a Hindi magazine) |
| प्रति | n.f. | copy |
| लौटाना | v.t. | to return, to give back |
| असर | n.m> | influence |
| चित्रण | n.m. | description, portrayal |
| छपना | v.i. | to be published |
| सामाजिक | adj. | social |
| घटना | n.f. | incident |
| शैली | n.f. | style |
| निभाना | v.t. | to stop, to leave |
| विचार | n.m. | thought |
| छोड़ देना | v.t. | to stop, to leave |
| धन | n.m. | wealth |
| समान | adj. | similar |
| हर्ष | n.m. | happiness |
| पुत्र | n.m. | son |
| मुबारक | adj. | auspicious, blessed, fortunate |
| यथास्थान | adv. | immediately |
| शराबी | n.m. | drunkard |
| परखना | v.t. | to test |
| निकट | adj. | close, near |
| चर्चा | n.f. | discussion |
| अंतर | n.m. | difference |
| खुद | pron./adv. | self /of one’s own accord, voluntarily |
| स्फूर्ति | n.f. | swiftness |
| सजीवता | n.f. | liveliness |
| चुटकी | n.f. | pinching, snapping with the finger |
| चुलबुलापन | n.m. | playfulness |
| गंभीरता | n.f. | seriousness |
| कवित्व | n.m. | poetic content or quality |
| यथार्थ | adj. | real, actual |
| दिखाना | v.t. | to show |
| वांछित | adj. | desired, wished for |
| नग्न | adj. | bare, naked |
| विषय | n.m. | topic/issue |
(7.1.) Mark the following sentences as True or False.
१. यह पत्र जैनेन्द्र ने लिखा है |
२. ‘गबन’ के सौ पृष्ठ छप चुके हैं |
३. ‘गढ़ कुंडार’ की प्रति एक महिला ले गईं |
४. ‘परख’ की आलोचना ‘माधुरी’ या ‘हंस’ में होगी |
५. धनपत राय को ‘गढ़ कुंडार’ पसंद नहीं आया |
६. ‘गबन’ एक सामाजिक घटना है |
७. धनपत राय ने जैनेन्द्र को पुत्री की बधाई दी |
८. जैनेन्द्र ने ‘शराबी’और ‘गढ़ कुंडार’ जेल भेजी थीं |
(7.2) Connect the phrases in the left column with the most appropriate ones in the right column to form complete sentences.
| पुरस्कारों का विचार करना मैंने | प्रसन्न होंगे |
| मैं तो पुराने | छोड़ दिया |
| मैं तो कोई | और कवित्व अधिक है |
| प्रसाद जी के यहाँ गंभीरता | ख़याल का आदमी हूँ |
| आशा है आप | स्कूल नहीं मानता |
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(7.3) The following words are derivations of some words introduced in the text. Please locate the words and make a sentence using each of the words.[1]
Example: गंभीर (adj., serious) —– गंभीरता, अली गंभीरता से कहने लगा कि…….
- छापना (v.t., to publish)
- चित्रित (adj., portrayed; pictured)
- समाज (n.m., society)
- समानता (n.f., similarity)
- मुबारकबाद (n.m., congratulations)
- सजीव (adj., lively, alive)
- यथार्थवाद (n.m., realism)
- वांछा (n.f., desire, wish)
- Find examples of answers here: https://open.lib.umn.edu/hindiurdu/chapter/chapter-5-answer-key/ ↵